नवपथ
Friday, 1 July 2011
Saturday, 25 June 2011
ये तेरा बिल, ये मेरा बिल, ये बिल बहुत ......
प्र: आपके लोकपाल बिल का ड्राफ्ट कमजोर कहा जा रहा है. इसमे प्रधानमंत्री, नौकरशाह, जज इत्यादि को बाहर रखा गया हैं.
उ: देखीये ये ए़कदम गलत बात है. हमारा ड्राफ्ट भ्रष्टाचार के विरूद्ध एक मजबूत कदम है और ये आम जनता के लिए है.
प्र: कैसे?
उ: कैसे? मैं आपसे पुछता हूं, आम आदमी जीवन में किसके द्वारा किये गए भ्रष्टाचार से प्रभावित होता है.
प्र: किसके?
उ: अरे भाई, दूधवाले, किरानेवाले, धोबी, कामवाली बाई, पानीपुरी वाले भैयाजी, ऑटो रिक्शावाला, पानवाला, देशीदारू की दुकान वाला इत्यादी. इन सबको हमने लोकपाल के घेरे में रखा है.
प्र: विस्तार से बतायेंगे?
उ: देखीये दूधवाला पानी मिलाये, किरानेवाला अनाज में कंकड-पथ्थर, कामवाली ज्यादा पगार की मांग करे या साहब को ब्लैक मेल करे. पानीपुरी में यदि पानी कि जगह कोई और तरल पदार्थ पाया जाये, ऑटोवाला घर तक ना छोड़े, पानवाला पान में तंबाकू कम डाले और देशी दारू में मजा न आये तो इनके विरूद्ध लोकपाल से शिकायत की जा सकती है, और कड़ी से कड़ी कार्यवाही की अपेक्षा भी की जा सकती हैं.
प्र: पर जो बड़े घोटाले और घोटालेबाज हैं उनका क्या?
उ: उनका क्या? अरे भाई, टेलीकॉम घोटाले, कॉमनवेल्थ खेल घोटाला, आदर्श घोटाला, बोफोर्स घोटाला, विदेशों में जमा काला-धन, सांसदों कि खरीद फरोख्त, हवाला कांड, मधुकोड़ा कांड, तेलगी प्रकरण इत्यादि से आम आदमी का क्या सम्बन्ध है, बताइये. ये तो हमारा अपना आपसी मामला है, जिसे हम अंदर-अंदर समझ लेते है. इसीलिये इन लोगो को लोकपाल के नीचे लाने का कोई मतलब नही क्योकि ये सब तो लोर्ड पाल हैं, और इनको पाल कर यदि हमारी थोड़ी कमाई हो जाती है, तो मैं पूछता हूं, जनता को इससे क्या कष्ट है. और एक बात मैं उन लोगो को भी बताना चाहता हूं, जो ये कहते हैं के हमारी पार्टी में लोकतंत्र नहीं है. हमारी पार्टी एक लोकतान्त्रिक पार्टी है, हम सब बराबर बाँट कर खाते हैं.
पीयूष
पार्टी, एक विचार धारा - एक नेता का इंटरव्यू
प्र. नेताजी, आजकल आपकी पार्टी के विरूद्ध लोग काफी गुस्से में हैं. आपको क्या लगता हैं चूक कहाँ हो गयी?
उ. देखीये, चूक हमसे नही बल्कि उन लोगो से हुई है, जो हमारी विचारधारा के विरूद्ध है.
प्र. कौनसी धारा?
उ. अरे भाई, विचारधारा, देखीये हमारी पार्टी केवल एक पार्टी मात्र नही है, बल्कि एक विचारधारा है बल्कि मैं तो कहूँगा एक संस्कृति है.
प्र. तो आप कह रहे थे कि कुछ लोग आपकी पार्टी की विचारधारा के विरूद्ध हैं, कौन लोग हैं वे?
उ. हैं एक ७० साल के महाशय, जो काफी दिनों तक खाए बिना रह सकते हैं. वैसे भी इस उम्र में भूख न लगना स्वाभाविक है. दूसरे एक महाशय हैं जो अच्छे खासे खाते पीते (पद पर) थे, पर न खा सके तो सामाजिक कार्यकर्ता बन गये. अब ये दोनों और उनसे जुड़े कुछ तथाकथित सिविल लाइन्स मेरा मतलब सिविल सोसाइटी के लोग, जो हमारी विचारधारा हैं, उसके विरूद्ध बिल की बात करते हैं. मैं यहाँ अंग्रेजी का एक शेर कहना चाहूँगा, क्योंकि मुझे अंग्रजी भी अच्छी आती है. मुझे कभी-कभी लोग प्यार से काला अंग्रेज भी कहते है, जो मुझे काफी गुदगुदाता है क्योंकि मै और मेरी पार्टी के तमाम लोग अंग्रेजो और विदेशियों के बहुत बड़े चाहक है, बल्की मेरा तो कहना है की चमचे है, तो शेर है, अच्छा भई कहावत है- where there’s a will, there’s a strong bill. No will, toothless bill.
शायद ये भूलते हैं या हो सकता है जानते हो की अब ये विचारधारा केवल हमारी पार्टी की नही परन्तु समग्र पार्टियों, औधोगिक गृहों एवं अनेकानेक लोगो द्वारा अपनाई जाने लगी हैं. क्योंकि स्वतंत्रता के बाद हमारी कामयाबी को देखते हुए अनेक लोगो ने इसे अपनाया है. मैं कुछ ज्वलंत उदाहरण देना चाहूँगा.
प्र. ज्वलंत?
उ. अरे भाई, कुछ जलते हुए उदाहरण, एक पार्टी ने हमारी पार्टी की विचार-धारा को पशु-चारा से अपनाया, हालाँकि पहले हमने उनको फंसवाया, फिर छुडवाया ये सोच कर के आखिर विचारधारा तो एक है. एक विचारधारा के लोग कब काम आ जाये क्या पता. दो बहनजी और एक चश्मे वाले भाईजी की पार्टीयो ने भी इसे अपनाया, उनके कुछ रिश्तेदार तो सरकारी मेहमान भी हैं, अब भई, कुछ पाने के लिए कुछ खोना तो पड़ता ही है, आजादी से पहले भी लोग जाते थे मेहमाननवाजी करवाने पर अब वो उद्देश्य तो रहा नही, तो अब विचारधारा के लिए जाते है, जाना चाहिये. और तो और हमारी एक मुख्य विपक्षी पार्टी ने दक्षिण भारत में हमारी विचारधारा को अपनाया हालाँकि वो ये मानने को तैयार नही है. हमारे एक पूर्व नेता ने तो हमारी पार्टी से अलग होकर भी इसी विचारधारा को अपनाकर अपनी अलग फ्रेंचायजी खोली है, जो बेहद कामयाब है, एक मिसाल है, बल्कि मैं तो कहता हूं बेमिसाल है, जैसे क्रिकेट कि दुनिया में सचिन तेंदुलकर, उन्हें हमारा और हमे उनका पूर्ण समर्थन है, क्योंकि हम उनकी और वो हमारी पोल, मेरा मतलब विचारधारा जानते है.
इस विचारधारा को अब लोकतंत्र के चौथे खम्भे ने भी हाथो-हाथ अपनाया है. पहले प्रिंट मीडिया से हिंदुस्तान में इसके प्रसार में समय लगता था लेकिन अब इलेक्ट्रोनिक माध्यमो द्वारा कुछ मिनटों में ही हम अपनी विचारधारा को लोगो तक हर कीमत पर पहुंचाते है. भाई जिसे धंधा (पर गन्दा) करना होगा उसे इसको अपनाना ही पड़ेगा. मैंने अपने पार्टी अध्यक्ष से बहुत पहले कहा था के हमे इस विचारधारा को पेटेंट करा लेना चाहिये, जिससे जो भी रोयल्टी..
प्र. रोयल टी?
उ. अरे भाई, रोयल चाय नही है, रोयल्टी है, पेमेंट. उससे इलेक्शन का कुछ खर्चा निकल जाये. ये अभी विचाराधीन है हो सकता है जल्द ही वो इस पर अपना हुक्म, मेरा मतलब फैसला जाहिर करे.
प्र. पर आपकी पार्टी कि विचारधारा है क्या?
उ. नही समझे? लोग समझ गये, कैसे पत्रकार हो? नए हो, पीले होने में कुछ समय लगेगा, फिर खुदबखुद हमारी विचारधारा को समझ भी लोगे और अपना भी लोगे. धन्यवाद, दूसरे (पीत)पत्रकार मेरा इंतज़ार कर रहे हैं.
पीयूष
पीयूष
Friday, 13 May 2011
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