Friday 13 May 2011

अब तो बस नवपथ


नवपथ, कुछ नवीन, न की जैसा चलता आया, अब तक, आज तक,
भेड़ों के झुंड मे सर झुकाये चलता रहता मैं अकेला तब तक,
यदि अंतर ने झकझोर के जगाया न होता कल तक,
भला वैसे भी बेहोशी का ये आलम टिकता कब तक,
बिक चुका था घर का सारा सामान साँझ तक,
अब तो नवपथ, कुछ नवीन, न की जैसा चलता आया, अब तक, आज तक.

पीयूष 

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